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ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
बे-अमल लोगों से जब पूछो तो कहते हैं की 'शान'
हम अज़ल से क़िस्मत-ए-नाकाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
कफ़्फ़ारा-ए-शराब मैं देता हूँ नक़्द-ए-होश
सरगर्म हूँ तलाफ़ी-ए-आमाल-ए-ज़िश्त में
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
मुनाफ़े'-ख़ोर दो दिन के लिए भी कर नहीं सकते
सिले में जिस अमल के नक़्द-ए-माल-ओ-ज़र नहीं मिलता
मुख़्तारुद्दीन
ग़ज़ल
जो न नक़्द-ए-दाग़-ए-दिल की करे शोला पासबानी
तो फ़सुर्दगी निहाँ है ब-कमीन-ए-बे-ज़बानी
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जज़्बा-ए-जेहद-ओ-अमल से ज़िंदगी कोह-ए-गिराँ
बे-अमल हो ज़िंदगी तो रेत की दीवार है
सय्यद मेराज जामी
ग़ज़ल
अगर कोशिश न की जाए तो कुछ हासिल नहीं होता
कि बे-सई-ए-अमल ता'मीर मुस्तक़बिल नहीं होता
शंकर लाल शंकर
ग़ज़ल
अज़ीज़ वारसी
ग़ज़ल
मक़ाम-ए-फ़िक्र-ओ-अमल है कि बे-नियाज़ी-ए-शौक़
कि दिल में ख़दशा-ए-सूद-ओ-ज़्यां कोई नहीं है
हादिस सलसाल
ग़ज़ल
बे-दिल सुख़न हूँ 'मेहर' पढ़ूँ सिन्न-ए-ईसवी
औरों का ज़र लुटा मिरा नक़्द-ए-सुख़न लुटा
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
तुम को पाया नक़्द-ए-हस्ती राएगाँ होने के बाद
दौलत-ए-नौ हाथ आई बे-निशाँ होने के बाद
नाज़िश बदायूनी
ग़ज़ल
राह-ए-हयात पुर-ख़तर नक़्द-ए-हयात मुख़्तसर
इश्क़ को बे-असर कहूँ इल्म को बे-अमल कहूँ
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
नक़्द-ए-हयात उन की है बे-मसरफ़-ओ-फ़ुज़ूल
जिन को ख़याल ही नहीं अपने वक़ार का