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ग़ज़ल
हज़ारों शोख़ अरमाँ ले रहे हैं चुटकियाँ दिल में
हया उन की इजाज़त दे तो कुछ बेबाकियाँ कर लूँ
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
तिरी बेबाकियाँ 'जानिब' यही तस्दीक़ करती हैं
हर इक इंसान को दुनिया में हुश्यारी नहीं आती
महेश जानिब
ग़ज़ल
निगह को बेबाकियाँ सिखाओ हिजाब-ए-शर्म-ओ-हया उठाओ
भुला के मारा तो ख़ाक मारा लगाओ चोटें जता-जता कर
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
बेबाकियाँ देखीं हैं तिरी बज़्म-ए-अदू में
आँखों में तिरी शर्म-ओ-हया को नहीं देखा
अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़
ग़ज़ल
माजरा-ए-शौक़ की बे-बाकियाँ उन पर निसार
हाए वो आँखें जो ज़ब्त-ए-ग़म में गिर्यां हो गईं
मजीद अमजद
ग़ज़ल
शोख़ियाँ बेबाकियाँ सब रफ़्ता रफ़्ता कम हुईं
इल्तिफ़ात-ए-यार जब से सूक़ियाना हो गया
बेदार भोपाली
ग़ज़ल
जो मिले तारीफ़ उन की हद से ज़ियादा कर दिया
जा रहीं पहले की वो बेबाकियाँ चिढ़ती हुईं
संजय कुमार कुन्दन
ग़ज़ल
तुम्हें अच्छी नहीं लगतीं मिरी बे-बाकियाँ लेकिन
तकल्लुफ़ में भी अक्सर दोस्ती बाक़ी नहीं रहती
बलबीर राठी
ग़ज़ल
दिल के रिश्तों में ज़रूरी हैं बहुत बे-बाकियाँ
हो तकल्लुफ़ दरमियाँ तो दोस्ती खुलती नहीं
मनीश शुक्ला
ग़ज़ल
यहाँ तो रात की बेदारियाँ मुसल्लम हैं
मगर वहाँ भी हसीं अँखड़ियों में ख़्वाब नहीं