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ग़ज़ल
नादानी और मजबूरी में यारो कुछ तो फ़र्क़ करो
इक बे-बस इंसान करे क्या टूट के दिल आ जाए तो
अंदलीब शादानी
ग़ज़ल
नेकी इक दिन काम आती है हम को क्या समझाते हो
हम ने बे-बस मरते देखे कैसे प्यारे प्यारे लोग
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
दिल एक मुसाफ़िर है बे-बस, जिसे नोच रहे हैं पेश-ओ-पस
इक दरिया पीछे बहता है और आगे गहरी खाई है
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
कभी जब हाथ मल कर उन से कहता हूँ कि बे-बस हूँ
तो वो हँस कर ये कहते हैं तुम्हारी बेबसी अच्छी
हफ़ीज़ जौनपुरी
ग़ज़ल
अपनी अपनी जगह पर दोनों बे-बस भी मसरूर भी हैं
तुम तहरीर-ए-संग हुए हम भूला हुआ इक़रार हुए
बशर नवाज़
ग़ज़ल
नादानी और मजबूरी में यारो कुछ तो फ़र्क़ करो
इक बे-बस इंसान करे क्या टूट के दिल आ जाए तो
अंदलीब शादानी
ग़ज़ल
हद-ए-नज़र तक इक तन्हाई ख़ाक उड़ाती फिरती है
सहरा बे-बस अपनी ही वीरानी से हो जाता है