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ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
है मौज-ए-बहर-ए-इश्क़ वो तूफ़ाँ कि अल-हफ़ीज़
बेचारा मुश्त-ए-ख़ाक था इंसान बह गया
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
जो मौक़ा मिल गया तो ख़िज़्र से ये बात पूछेंगे
जिसे हो जुस्तुजू अपनी वो बेचारा किधर जाए
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
न कुछ चारा चला लाचार चारों हार कर बैठे
बिचारे बेद ने प्यारे बहुत तुम को बेचारा है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
हुस्न बे-चारा तो हो जाता है अक्सर मेहरबाँ
फिर उसे आमादा-ए-बे-दाद कर लेता हूँ मैं