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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
न कुछ चारा चला लाचार चारों हार कर बैठे
बिचारे बेद ने प्यारे बहुत तुम को बेचारा है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
बेद-ए-मजनूँ को हो जब देखते ऐ अहल-ए-नज़र
किसी मजनूँ को भी आशुफ़्ता-बसर देखते हो
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
नहीं ये बेद-ए-मजनूँ गर्दिश-ए-गरदून-ए-गर्दां ने
बनाया है शजर क्या जानिए किस मू परेशाँ को
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कुश्ता-ए-ज़ुल्फ़ के मरक़द पे तू ऐ लैला-वश
बेद-ए-मजनूँ ही लगा ता-कि पता याद रहे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
क़द-ए-मजनूँ कोई पहले से छड़ी बेद की है
जब ज़रा झुकता है क़द पाँव से जा लगता है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
एक ख़िल्क़त ही नहीं है बद-गुमानी का शिकार
उस की जानिब से मिरे भी दिल में शक आने को है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
अरक़-ए-बहार-ए-शराब है वो ही आज छिड़केंगे आप पर
न तो बेद-ए-मुश्क है इस घड़ी न तो केवड़ा न गुलाब है