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ग़ज़ल
ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो
कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
उन्हें आँखों ने बेदर्दी से बे-घर कर दिया है
ये आँसू क़हक़हा बनने की कोशिश कर रहे थे
अब्बास क़मर
ग़ज़ल
घर से बे-घर हो कर हम तो मारे मारे फिरते हैं
ये बंजारा दिल देखो अब हम को किधर ले जाएगा
जाफ़र अब्बास
ग़ज़ल
तेरी लटों में सो लेते थे बे-घर आशिक़ बे-घर लोग
बूढ़े बरगद आज तुझे भी काट गिराया लोगों ने