आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "behosh-pan"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "behosh-pan"
ग़ज़ल
बे-हिसी पर मिरी वो ख़ुश था कि पत्थर ही तो है
मैं भी चुप था कि चलो सीने में ख़ंजर ही तो है
ज़ेब ग़ौरी
ग़ज़ल
हुआ जब ग़म से यूँ बे-हिस तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से तो ज़ानू पर धरा होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
और अब अक़्ल का बार नहीं गर सह सकते हो
दिल के इस पागल-ख़ाने में रह सकते हो