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ग़ज़ल
किसी बेकस को ऐ बेदाद गर मारा तो क्या मारा
जो आप्-ही मर रहा हो उस को गर मारा तो क्या मारा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
मिरा जी जलता है उस बुलबुल-ए-बेकस की ग़ुर्बत पर
कि जिन ने आसरे पर गुल के छोड़ा आशियाँ अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
किसी ज़रदार से जिंस-ए-तबस्सुम माँगने वाले
किसी बेकस के लाशे पर शरीक-ए-चश्म-ए-नम हो जा
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
अश्क जब टपके किसी बेकस की आँखों से 'नदीम'
यूँ लगा तूफ़ान की ज़द में समुंदर आ गया
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
क्या काम चले क्या रंग जमे क्या बात बने कौन उस की सुने
है 'अकबर'-ए-बेकस एक तरफ़ और सारी ख़ुदाई एक तरफ़
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
करे लब-आश्ना हर्फ़-ए-शिकायत से कहाँ ये दम
तिरे महज़ून-ए-बे-दम में तिरे मफ़्तून-ए-बेकस में