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ग़ज़ल
ब्याज में खेत न ज़ेवर न वो धन चाहता है
सूद-ख़ोर आज तो बेवा का बदन चाहता है
राजीव रियाज़ प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
फिर दुल्हन बनने से पहले मुफ़्लिसी बेवा हुई
फिर अमीर-ए-शहर ख़्वाबों को चिता दे जाएगा
जावेद अकरम फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
किसी बेवा के दिल से ये हक़ीक़त पूछिए जा कर
कि बच्चों को जवाँ करने में कितनी देर लगती है