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ग़ज़ल
ज़क़न की चाह में ये सब्ज़ी-ए-ख़त ज़हर-ए-क़ातिल है
परी है भाँग कूए में न हो क्यूँ ख़ल्क़ चित-भंगी
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे
इस लोक को भी अपना न सके उस लोक में भी पछताओगे
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
जो नाज़ है वो अपनाता है जो ग़म्ज़ा है वो लुभाता है
इन रंग-बिरंगी पर्दों में घातों पर घातें होती हैं
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
यहाँ पे 'मेराज' तेरे लफ़्ज़ों की आबरू क्या
ये लोग बाँग-ए-दरा की क़ीमत लगा रहे हैं
मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
हम मछेरों से पूछो समुंदर नहीं है ये इफ़रीत है
तुम ने क्या सोच कर साहिलों से बंधी कश्तियाँ खोल दीं
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
राहिल हूँ मुसलमान ब-साद-नारा-ए-तकबीर
ये क़ाफ़िला ये बाँग-ए-दरा मेरे लिए है