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ग़ज़ल
धनक की बारिशें बरफ़ाब शहरों पर नहीं होतीं
यहाँ फूलों का रस्ता उम्र भर मत देखते रहना
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
पीर-ए-मुग़ाँ के नाम पर साक़ी हर इक को मस्त कर
आज के बाद साल भर मै-कदा-बाज़ हो न हो
हयात अमरोहवी
ग़ज़ल
'मतीन' इक उम्र गुज़री है सुख़न को आब देने में
तभी अल्मास-लहजा सब से हट कर बन गया अपना
ग़यास मतीन
ग़ज़ल
'नज़ीर' इस रेख़्ते को सुन वो हँस कर यूँ लगी कहने
अगर होते तो मैं देती तुझे इक थाल भर मोती
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मय-ख़ाने पर काले बादल जब घिर घिर कर आते हैं
हम भी आँखों के पैमाने भर भर कर छलकाते हैं
आजिज़ मातवी
ग़ज़ल
वो अधूरे गीत का मुखड़ा ही बन पाया 'मतीन'
मैं उसे नग़्मा बनाता दिल में अरमाँ रह गया