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ग़ज़ल
कल भी नवा-ए-आगही क़ीमत-ए-संग-ओ-ख़िश्त थी
नग़्मा-ए-अम्न-ओ-आश्ती जिंस-ए-गिराँ है आज भी
दर्शन सिंह
ग़ज़ल
इसी ख़ातिर तो ये सिंफ़-ए-सुख़न मैं ने चुनी है
कि जो महसूस करता हूँ बताना चाहता हूँ