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ग़ज़ल
वही आ के बिराजे आँगन में वही साजे नद्दी के तट पर
वही भैंसें चराए बैलों में वही चरवाहा वही कामा
नासिर शहज़ाद
ग़ज़ल
ख़फ़ा हो किस पे भंवें क्यूँ चढ़ी हैं ख़ैर तो है
ये आप तेग़ पे धर कर जिला किधर को चले
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
इश्क़ ओ मोहब्बत क्या होते हैं क्या समझाऊँ वाइज़ को
भैंस के आगे बीन बजाना मेरे बस की बात नहीं
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
अदाएँ बाँकी अजब तरह की वो तिरछी चितवन भी कुछ तमाशा
भंवें वो जैसे खिंची कमानें पलक सिनाँ-कश निगाह भाला
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नज़र मिलती है पीछे पहले तनती हैं भंवें उन की
कहाँ तक देखे जाएँ कज-अदाई देखने वाले
बेख़ुद देहलवी
ग़ज़ल
जिस की लाठी में है दम भैंस भी उस की होगी
ज़ुल्म क्या जाने कि होती है शराफ़त कैसी