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ग़ज़ल
बराबर बाँट देती है वो साँसें ख़ाक-ज़ादों में
न-जाने ज़िंदगी किस की दुकाँ से भान लेती है
औरंग ज़ेब
ग़ज़ल
ख़ुदा ने किस शहर अंदर हमन को लाए डाला है
न दिलबर है न साक़ी है न शीशा है न प्याला है
पंडित चंद्र भान बरहमन
ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क्या हुस्न है यूसुफ़ भी ख़रीदार है तेरा
कहते हैं जिसे मिस्र वो बाज़ार है तेरा
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
ग़ज़ल
उम्र भर ख़ाना-ए-ख़ुम्मार में सर-ख़ुश रहते
ज़िंदगी का यही पैमाना बनाया होता
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
ग़ज़ल
दिलकशी नाम को भी आलम-ए-इम्काँ में नहीं
अपने मतलब का कोई फूल गुलिस्ताँ में नहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
ग़ज़ल
ख़याल-ए-यार ने मरक़द पे कर दी नूर की बारिश
मुक़द्दर का सितारा बन गया दाग़-ए-जिगर अपना
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
ग़ज़ल
ले उड़ा रंग फ़लक जल्वा-ए-रा'नाई का
अक्स है क़ौस-ए-क़ुज़ह में तिरी अंगड़ाई का
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
ग़ज़ल
दम का क्या ठीक है दम-भर में है दम-भर में नहीं
चलते फिरते मिरी बालीं पे ज़रा हो जाना
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
ग़ज़ल
लब-ए-शीरीं अगर मा'शूक़ का क़ंद-ए-मुकर्रर है
जभी जानें कि बैठें मक्खियाँ और उस पे भन भन हो
ज़रीफ़ लखनवी
ग़ज़ल
ख़ाकसारी से यहाँ तक मर्तबा ऊँचा हुआ
दीदा-ए-गर्दूं की पुतली ख़ाक आग का पुतला हुआ