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ग़ज़ल
दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
ज़ख़्म के भरते तलक नाख़ुन न बढ़ जावेंगे क्या
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वफ़ा का यूँ तो दम भरते हैं इस दुनिया में सब लेकिन
वफ़ा के नाम पर मिट कर दिखाना किस को आता है
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
मैं हूँ वो तस्वीर जिस में हादसे भरते हैं रंग
ख़ाल-ओ-ख़त खुलते हैं मेरे ख़ंजरों के दरमियाँ
बशीर फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
'शाइर' उन की दोस्ती का अब भी दम भरते हैं आप
ठोकरें खा कर तो सुनते हैं सँभल जाते हैं लोग
हिमायत अली शाएर
ग़ज़ल
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
तिरा दम भरते हैं हिन्दू अगर नाक़ूस बजता है
तुझे भी शैख़ ने प्यारे अज़ाँ दे कर पुकारा है