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ग़ज़ल
तुम्हारी दुनिया के बाहर अंदर भटक रहा हूँ
मैं बा'द-ए-तर्क-ए-जहाँ यहीं पर भटक रहा हूँ
पल्लव मिश्रा
ग़ज़ल
तुझे न माने कोई तुझ को इस से क्या 'मजरूह'
चल अपनी राह भटकने दे नुक्ता-चीनों को
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
तुझे न माने कोई तुझ को इस से क्या 'मजरूह'
चल अपनी राह भटकने दे नुक्ता-चीनों को
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
मंज़िल पे न पहुँचा जब कोई इल्ज़ाम उसी पर क्यूँ आए
रह-रव के भटकने में है कुछ रहबर की ज़िम्मे-दारी भी
आज़िम कोहली
ग़ज़ल
है आज और ही कुछ ज़ुल्फ़-ए-ताबदार में ख़म
भटकने वाले को मंज़िल का रास्ता तो मिला
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
भटकने वालों को क्या फ़र्क़ इस से पड़ता है
सफ़र में कौन सड़क किस तरफ़ को जाती है
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
सफ़र लम्बा है राही का अभी तो दूर है मंज़िल
भटकने के लिए राहों में इस के तितलियाँ रख दो