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ग़ज़ल
मौसम-ए-गुल में वो उड़ते हुए भौँरों की तरह
ग़ुंचा-ए-दिल पे वो करती हुई यलग़ार आँखें
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
फूलों में न पहली सी वो ख़ुशबू है न वो रंग
भौँरों को गिरफ़्तार-ए-मेहन देख रहा हूँ
गौहर शेख़ पूर्वी
ग़ज़ल
दिल वालों की सरगरदानी गुलशन में भौँरों की तरह
ख़ून-ए-जिगर का अफ़्साना है फूल के रस की बात नहीं
अनवर अली ख़ान सोज़
ग़ज़ल
परेशाँ हूँ कँवल जैसी ये आँखें चूम लेने दो
कि इन फूलों पे मँडलाएगा ये भौंरा न रोज़ाना
क़ैसर-उल जाफ़री
ग़ज़ल
सभी को इल्म है गो फूल उन को कुछ नहीं कहते
ये भौंरे हैं मिज़ाज-ए-आशिक़ाना ले के चलते हैं
अज़हर बख़्श अज़हर
ग़ज़ल
बना रखा है काँटों पर घरौंदा गुल ने ख़ुशबू का
बिला मक़्सद तो भौंरे नाज़-बरदारी नहीं करते