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ग़ज़ल
हर जंगल की एक कहानी वो ही भेंट वही क़ुर्बानी
गूँगी बहरी सारी भेड़ें चरवाहों की जागीरें हैं
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
भेड़ें उजली झाग के जैसी सब्ज़ा एक समुंदर सा
दूर खड़ा वो पर्बत नीला ख़्वाब में खोया लगता है
प्रकाश फ़िक्री
ग़ज़ल
सदा से हैं किसी नादीदा गूँज की ताबे
ये भेड़ें सब्ज़ पहाड़ों ने जैसे पा ली हों
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
अपनी सारी गुम-शुदा भेड़ें जम' तो कीं चरवाहे ने
उन भेड़ों के पीछे पीछे पूरे दिन बेताब रहा
तालिब जोहरी
ग़ज़ल
याद के फेर में आ कर दिल पर ऐसी कारी चोट लगी
दुख में सुख है सुख में दुख है भेद ये न्यारा भूल गया
मीराजी
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
बे-ताबी कुछ और बढ़ा दी एक झलक दिखला देने से
प्यास बुझे कैसे सहरा की दो बूँदें बरसा देने से
जलील ’आली’
ग़ज़ल
दिल से पहुँची तो हैं आँखों में लहू की बूँदें
सिलसिला शीशे से मिलता तो है पैमाने का