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ग़ज़ल
चरवाहा भेड़ों को ले कर घर घर आया रात हुई
तू पंछी दिल तेरा पिंजरा पिंजरे में जा रात हुई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
हफ़ीज़ ताईब
ग़ज़ल
उन्हें मैं क़ौम का क़ाइद तो कह नहीं सकता
वो भेड़िये हैं जो भेड़ों की खाल ओढ़े हैं
कलीम क़ैसर बलरामपुरी
ग़ज़ल
'यूसुफ़' इक भेदों भरे पुल की रिफ़ाक़त पर हमें
कितनी वीराँ सा'अतों में राएगाँ रख्खा गया
यूसुफ़ हसन
ग़ज़ल
ख़ामोश चरागाहों के लिए कोई बादल ऐसा गीत लिखूँ
इन्ही धूप-भरे मैदानों में कहीं भेड़ों का ग़ल्ला होगा
सरवत हुसैन
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अज्ञात
ग़ज़ल
मिरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी