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ग़ज़ल
दिन सुनहरा है तो अपने आप से मिल लो ज़रूर
शाम-ता-शब तो फ़क़त तकिया भिगोना चाहिए
उरूज ज़ेहरा ज़ैदी
ग़ज़ल
बिछड़ते वक़्त उस की आँख में कुछ भी नहीं देखा
उसे दो पल तो पलकों को भिगोना चाहिए था ख़ैर