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ग़ज़ल
जुदा अपनों से हो कर टूट जाता है कोई कैसे
जो बिछड़ोगे कभी मुझ से तो ख़ुद ही जान जाओगे
आज़िम कोहली
ग़ज़ल
न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे
तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा मगर दिल टूट जाएँगे
राजेन्द्र कृष्ण
ग़ज़ल
मेरे हर जुज़्व का है मुझ से अलग एक वुजूद
तुम मुझे जितना बिगाड़ोगे मैं बन सकता हूँ