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ग़ज़ल
अल्लाह रे तेरी तुंदी-ए-ख़ू जिस के बीम से
अजज़ा-ए-नाला दिल में मिरे रिज़्क़-ए-हम हुए
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वो मर्ग़-ज़ार कि बीम-ए-ख़िज़ाँ नहीं जिस में
ग़मीं न हो कि तिरे आशियाँ से दूर नहीं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
उमीद-ओ-बीम के मेहवर से हट के देखते हैं
ज़रा सी देर को दुनिया से कट के देखते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
तग़ाफ़ुल बद-गुमानी बल्कि मेरी सख़्त-जानी से
निगाह-ए-बे-हिजाब-ए-नाज़ को बीम-ए-गज़ंद आया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इश्क़ ने अपनी जान को रोग कई लगा लिए
हिज्र-ओ-विसाल उमीद-ओ-बीम कौन बला-ए-जाँ न था
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
जन्नत की है उम्मीद तो दोज़ख़ का है खटका
दुश्वार है मैदान बहुत बीम-ओ-रजा का