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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
ज़र्रे ज़र्रे में धड़कती है कोई शय जैसे
तिरी नज़रों ने फ़ज़ाओं में बिखेरा क्या है
नरेश कुमार शाद
ग़ज़ल
विसाल की सरहदों तक आ कर जमाल तेरा पलट गया है
वो रंग तू ने मिरी निगाहों पे जो बिखेरा पलट गया है
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
बात अगर न करनी थी क्यूँ चमन में आए थे
रंग क्यूँ बिखेरा था फूल क्यूँ खिलाए थे
कालीदास गुप्ता रज़ा
ग़ज़ल
तमाशा है मज़ा है सैर है क्या क्या अहाहाहा
मुसव्विर ने अजब कुछ रंग क़ुदरत का बिखेरा है