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ग़ज़ल
रुख़्सत-ए-नुत्क़ ज़बानों को रिया क्या देगी
दर्स हक़-गोई का ये बिंत-ए-ख़ता क्या देगी
वहीद अख़्तर
ग़ज़ल
दिल में शर्मिंदा हैं एहसास-ए-ख़ता रखते हैं
हम गुनहगार हैं पर ख़ौफ़-ए-ख़ुदा रखते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
किस ख़ता पर ये उठाना पड़ी रातों की सलीब
हम ने देखा था अभी ख़्वाब-ए-सहर ही कितना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
क्या क्या हैं गिले उस को बता क्यूँ नहीं देता
ताज़ीर-ए-ख़ता मुझ को सुना क्यूँ नहीं देता
इब्न-ए-रज़ा
ग़ज़ल
दिल की चोरी में जो चश्म-ए-सुर्मा-सा पकड़ी गई
वो था चीन-ए-ज़ुल्फ़ में ये बे-ख़ता पकड़ी गई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मुर्ग़-ए-सहर अदू न मोअज़्ज़िन की कुछ ख़ता
'परवीं' शब-ए-विसाल में सब है फ़ुतूर-ए-सुब्ह
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
तजल्ली गर तिरी पस्त ओ बुलंद उन को न दिखलाती
फ़लक यूँ चर्ख़ क्यूँ खाता ज़मीं क्यूँ फ़र्श हो जाती
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
रिदा-ए-बिन्त-ए-इनब बन गई बिसात-ए-नुजूम
ये एहतिमाम है 'राजे' किस आदमी के लिए
माया खन्ना राजे बरेलवी
ग़ज़ल
जब भी आज़ादी मिलेगी गर्दिश-ए-अय्याम से
मैं भी 'महवर' 'आशिक़-ए-बिन्त-ए-फुलाँ हो जाऊँगा
महवर सिरसिवी
ग़ज़ल
सदा याँ हिल्लत-ए-बिंत-ए-इनब की अक़्द जारी है
तरीक़ा है निराला पीर-ए-मय-कश की तरीक़त का