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ग़ज़ल
रिदा-ए-बिन्त-ए-इनब बन गई बिसात-ए-नुजूम
ये एहतिमाम है 'राजे' किस आदमी के लिए
माया खन्ना राजे बरेलवी
ग़ज़ल
जब भी आज़ादी मिलेगी गर्दिश-ए-अय्याम से
मैं भी 'महवर' 'आशिक़-ए-बिन्त-ए-फुलाँ हो जाऊँगा
महवर सिरसिवी
ग़ज़ल
सदा याँ हिल्लत-ए-बिंत-ए-इनब की अक़्द जारी है
तरीक़ा है निराला पीर-ए-मय-कश की तरीक़त का