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ग़ज़ल
मुमकिन है कि अब भी होंटों पर कोई भूला बिसरा शो'ला हो
मैं जलते जलते राख हुआ लहजा मद्धम करने के लिए
साक़ी फ़ारुक़ी
ग़ज़ल
ला-वारिस लाशों पर आख़िर कौन ही अश्क बहाता है
सब ने इक तस्वीर उतारी और बिसरा कर चले गए
मिताली राज तिवारी
ग़ज़ल
मान लिया दिल बस में नहीं है फिर भी जीना तो होगा ही
या अब अपना तन बिसरा दूँ या फिर और कोई तन ढूँडूँ
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
हिलाल फ़रीद
ग़ज़ल
'साज़' मिरी जानिब उठती है रात गए अंगुश्त-ए-''अलस्त''
रूह में इक भूला-बिसरा पैमान उभरता आता है
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
जब शहर के लोग न रस्ता दें क्यूँ बन में न जा बिसराम करे
दीवानों की सी न बात करे तो और करे दीवाना क्या