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ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
काग़ज़ की इक कश्ती ले कर बारिश में क्यूँ निकले हो
भूले-बिसरे बचपन की यादों के पैकर भीगेंगे
ग़यास मतीन
ग़ज़ल
दरख़्तों से जुदा होते हुए पत्ते अगर बोलें
तो जाने कितने भूले-बिसरे अफ़्सानों के दर खोलें
ख़ालिद शरीफ़
ग़ज़ल
भूले-बिसरे सपने खोजें ब्याकुल नैनाँ बेकल हृदय
चंद्र किरन सी मुस्काती थी दहके हुए अँगारों में
इशरत क़ादरी
ग़ज़ल
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
ख़ुद के मुतलाशी को एक न इक दिन आख़िर-कार अपने
भूले-बिसरे हुए की चौखट जाना पड़ता है
ख़ावर जीलानी
ग़ज़ल
कभी भूले-बिसरे जो मैं कहीं किसी मय-कदे में चला गया
मिरे नाम आया है जाम अगर न लिया गया न पिया गया