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ग़ज़ल
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
जब शहर के लोग न रस्ता दें क्यूँ बन में न जा बिसराम करे
दीवानों की सी न बात करे तो और करे दीवाना क्या
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
नुमायाँ हो के दिखला दे कभी उन को जमाल अपना
बहुत मुद्दत से चर्चे हैं तिरे बारीक-बीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अंधों बहरों की नगरी में यूँ कौन तवज्जोह करता है
माहौल सुनेगा देखेगा जिस वक़्त बजेंगी ज़ंजीरें
हफ़ीज़ मेरठी
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
मसीहाई का दावा और बीमारों से ये ग़फ़लत
दवा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते