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ग़ज़ल
बिन चाहे बिन बोले पल में टूट फूट कर फिर बन जाए
बालक सोच रहा है अब भी ऐसा कोई खिलौना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
दावा-ए-मज्ज़ूबियत क्या मुझ से करे मंसूर 'वफ़ा'
बक उठना है सहल मगर बकते जाना सहल नहीं