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ग़ज़ल
जहाँ दो दिल मिले दुनिया ने काँटे बो दिए अक्सर
यही अपनी कहानी है न तुम समझे न हम समझे
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
दहक़ाँ की तरह दाना ज़मीन में न बो अबस
बौना वही जो तुख़्म-ए-अमल दिल में बोइए