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ग़ज़ल
गौहर उस्मानी
ग़ज़ल
चमन में क्या हुआ गुलचीं हो बागुल-कार क्या जाने
नज़र आता नहीं कुछ नर्गिस-ए-बीमार हैं दोनों
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
पा-ब-गुल जो थे वो आज़ुर्दा नज़र आते हैं
शायद इस राह से वो सर्व-ए-रवाँ गुज़रा है
अब्दुल मजीद सालिक
ग़ज़ल
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
वो मक़्तल में अगर खींचे हुए तलवार बैठे हैं
तो हम भी जान देने के लिए तय्यार बैठे हैं
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
आना भी आने वाले का अफ़्साना हो गया
दुश्मन के कहने सुनने से क्या क्या न हो गया