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ग़ज़ल
कभी तो फ़स्ल आएगी जहाँ में मेरे होने की
तिरी ख़ाक-ए-बदन में ख़ुद को बोना चाहता हूँ मैं
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
तिरे दिल की ज़मीं पर गुल खिलाना अपनी उल्फ़त के
तिरे आँखों में अपने ख़्वाब बोना याद आता है
नोमान अनवर
ग़ज़ल
मिल कर बैठें नफ़रत छोड़ें प्यार वफ़ा की बात करें
बाग़-ए-वफ़ा में हम ने यारो बीज उल्फ़त का बोना है
आज़िम कोहली
ग़ज़ल
अभी तो ख़ुश्क बहुत है मौसम बारिश हो तो सोचेंगे
हम ने अपने अरमानों को किस मिट्टी में बोना है
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
'ख़लील' अब मेरी आँखों में सुनहरे ख़्वाब मत बोना
मैं पहले ही दुखों की खेतियाँ तन्हा उगाता हूँ
ख़लील अहमद
ग़ज़ल
छीन कर सारी उम्मीदें मुझ से वो कहता है अब
किश्त-ए-दिल में आरज़ू का बीज बोना चाहिए
प्रकाश फ़िक्री
ग़ज़ल
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
ऐनुद्दीन आज़िम
ग़ज़ल
पढ़ा था उस की आँखों में अधूरा एक मिसरा' जब
उसे लिख कर ग़ज़ल का बीज बोना चाहिए था ख़ैर