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ग़ज़ल
ये जो बोतलों में शराब है ये ख़राब थी ये ख़राब है
इसे छोड़ दे इसे तोड़ दे ये किसी मरज़ की दवा नहीं
शकील आज़मी
ग़ज़ल
आ शैख़ मय-कदे में तेरी आक़िबत ब-ख़ैर
रहमत को बोतलों में छुपाए हुए हैं हम
यादगार हुसैन नश्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
वाइज़ तुम्हारे वस्फ़-ए-शराब-ए-तहूर पर
आती है बोतलों से सदा क़ाह-क़ाह की
नवाब उमराव बहादूर दिलेर
ग़ज़ल
ख़ुद-ब-ख़ुद नींद सी आँखों में घुली जाती है
महकी महकी है शब-ए-ग़म तिरे बालों की तरह
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
ये दिल की तिश्नगी है या नज़र की प्यास है साक़ी
हर इक बोतल जो ख़ाली है भरी मालूम होती है