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ग़ज़ल
बुझते हुए दिए की लौ और भीगी आँख के बीच
कोई तो है जो ख़्वाबों की निगरानी करता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
हम को सारी रात जगाया जलते बुझते तारों ने
हम क्यूँ उन के दर पर उतरे कितने और ठिकाने थे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
दिए जलते हैं, बुझते हैं, मिरे अतराफ़ में और मैं
बस इक साए के पीछे भागता रहता हूँ बारिश में
ख़ालिद मोईन
ग़ज़ल
किस ने सोचा था कि रंग-ओ-नूर की बारिश के बअ'द
हम फ़क़त बुझते चराग़ों का धुआँ रह जाएँगे