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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
न मैं तंदुरुस्त होता न कभी स्कूल जाता
कभी सर में दर्द रहता तो कभी बुख़ार होता
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मोहब्बत के मरीज़ों का मुदावा है ज़रा मुश्किल
उतरता है 'सदा' उन का बुख़ार आहिस्ता आहिस्ता
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल
जाने किस को ढूँडने दाख़िल हुआ है जिस्म में
हड्डियों में रास्ता करता हुआ पीला बुख़ार
आदिल मंसूरी
ग़ज़ल
रो के आँखों से निकालूँ में बुख़ार-ए-दिल को
कर चुके अब्र-ए-मिज़ा भी कहीं बाराँ पैदा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
ये नाज़ुकी के हैं मा'नी के बाग़ में वो गुल
क़रीब आतिश-ए-गुल जो गया बुख़ार आया