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ग़ज़ल
हसन रिज़वी
ग़ज़ल
सुनहरे ख़्वाब आँखों में बुना करते थे हम दोनों
परिंदों की तरह दिन भर उड़ा करते थे हम दोनों
हसन अब्बासी
ग़ज़ल
मर भी जाता है तो देता है जहाँ को रेशम
जाल अतराफ़ वो अपने ही बुना करता है
अज़ीमुद्दीन साहिल साहिल कलमनूरी
ग़ज़ल
किसी और ने तो बुना नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ
तिरे आसमाँ से जुदा नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
अपनी अना का जाल किसी दिन पागल-पन में तोडूँगा
अपनी अना के जाल को मैं ने पागल-पन में बुना भी है
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
बहाने नित नए हर दिन बुना करते हो तुम साहब
हमें ये साफ़ ही कह दो कि अब आया नहीं जाता