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ग़ज़ल
दिल में छेद कर ख़ून की बूंदों से हर रेज़ा भरे
टूट कर बन जाएँ बूँदे की कटारी चूड़ियाँ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
पहले तू आग़ाज़-ए-सफ़र कर फिर तारों की दूकानों से
बाली बुंदे झुमके पायल ले दूँगा मैं कंगन भी
विजय शर्मा
ग़ज़ल
बदन में जामा-ए-ज़र-कश सरापा जिस पे ज़ेब-आवर
कड़े बुंदे छड़े छल्ले अँगूठी नौ-रतन हैकल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
आसमाँ से क्या ग़रज़ जब है ज़मीं पर ये चमक
माह-ओ-अंजुम से हैं बढ़ कर उन के बुंदे बालियाँ
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भँवर है जिस की
तुम ने अच्छा ही किया मुझ से किनारा कर के
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
बे-ताबी कुछ और बढ़ा दी एक झलक दिखला देने से
प्यास बुझे कैसे सहरा की दो बूँदें बरसा देने से