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ग़ज़ल
कौन कहता है फ़क़त वक़्त गुज़ारी हुई है
मैं ने ये उम्र तिरे इश्क़ में हारी हुई है
सय्यदा फ़रह शाह
ग़ज़ल
बार-हा दिल को मैं समझा के कहा क्या क्या कुछ
न सुना और खोया मुझ से मिरा क्या क्या कुछ
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
फ़त्ह कितनी ख़ूब-सूरत है मगर कितनी गराँ
बारहा रद की है मैं ने दावत-ए-वस्ल-ए-बुताँ
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
ग़ज़ल
समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा
ग़लत था ऐ जुनूँ शायद तिरा अंदाज़ा-ए-सहरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
नज़्अ' में वो मिरे पहलू से गए दिल की तरह
मैं तड़पता ही रहा फ़र्श पे बिस्मिल की तरह
फ़ाख़िर लखनवी
ग़ज़ल
काविश-ए-ग़म भी है ज़ालिम और तेरी याद भी
ये दिल-ए-मुज़्तर मिरा वीराँ भी है आबाद भी