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ग़ज़ल
सोज़-ए-दरूँ से जल-बुझो लेकिन धुआँ न हो
है दर्द-ए-दिल की शर्त कि लब पर फ़ुग़ाँ न हो
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
बज़्म-ए-ख़याल में तिरे हुस्न की शम्अ जल गई
दर्द का चाँद बुझ गया हिज्र की रात ढल गई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ये ग़ज़ल कि जैसे हिरन की आँख में पिछली रात की चाँदनी
न बुझे ख़राबे की रौशनी कभी बे-चराग़ ये घर न हो