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ग़ज़ल
बहुत कंजूस हैं आँखें मिरी आँसू बहाने में
अगरचे दौलत-ए-ग़म की फ़रावानी नहीं जाती
अबरार अहमद काशिफ़
ग़ज़ल
नहीं शराब से रंगीं तो ग़र्क़-ए-ख़ूँ हैं कि हम
ख़याल-ए-वज़्-ए-क़मीस-ओ-लिबादा रखते हैं