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ग़ज़ल
आबिद रज़ा
ग़ज़ल
न चिरे नोक से नश्तर के आयाज़म-बिल्लह
कोई उश्शाक़ के थे छाती के फोड़े पत्थर
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
सिपह-गरी तो बुज़ुर्गों के साथ दफ़्न हुई
हमें तो आज फ़न-ए-क़ील-ओ-क़ाल आता है
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
सिपह-गरी तो बुज़ुर्गों के साथ दफ़्न हुई
हमें तो आज फ़न-ए-क़ील-ओ-क़ाल आता है
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
क्यों लिया था मिरा दिल दिल मुझे वापस कर दे
छोड़ ये रोज़ की किल किल मुझे वापस कर दे
सय्यद सलमान गीलानी
ग़ज़ल
रह गई कितनी बात अधूरी फ़ोन हुआ है क्यों बंद उस का
क्यों हर रब्त के धागे के अंदर मजबूरी रह जाती है
दुआ अली
ग़ज़ल
ये हक़ीक़तों के दलदल कहीं खा न जाएँ तुम को
मिरे ख़्वाब से गुज़र लो मिरा फ़ोन तो उठाओ
नवेद क्यानी
ग़ज़ल
बेटा बेटी फ़ोन पर अक्सर बताते हैं मुझे
वक़्त मिलता ही नहीं है गाँव आने के लिए