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ग़ज़ल
मेले ठेले झूला चकरी होली दिवाली राखी गोठ
ईद मोहर्रम ज़ेहन में मेरे बसा हुआ है सब का सब
इसहाक़ असर
ग़ज़ल
सब्र के सारे मदारिज चाकरी करते फिरें
बाँट दूँ सारी सबीलें और ख़ुद प्यासा रहूँ
माजिद जहाँगीर मिर्जा
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
चारागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वर्ना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
फ़ितरत-ए-हुस्न तो मा'लूम है तुझ को हमदम
चारा ही क्या है ब-जुज़ सब्र सो होता भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
ज़ख़्मों पर मरहम लगवाओ लेकिन उस के हाथों से
चारा-साज़ी एक तरफ़ है उस का छूना एक तरफ़
वरुन आनन्द
ग़ज़ल
रहा करते हैं क़ैद-ए-होश में ऐ वाए-नाकामी
वो दश्त-ए-ख़ुद-फ़रामोशी के चक्कर याद आते हैं