aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "chapa.d"
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र हैआँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
चबा लें क्यों न ख़ुद ही अपना ढाँचातुम्हें रातिब मुहय्या क्यों करें हम
तबाबत में मसीहा हूँ व-लेकिनमरज़ ये तो चपड़ जाता है मुझ से
क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू परचमन और भी आशियाँ और भी हैं
दिल तो चमक सकेगा क्या फिर भी तरश के देख लेंशीशा-गिरान-ए-शहर के हाथ का ये कमाल भी
बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँदो क़दम जो भी मिरे साथ चला बैठ गया
कभी हुस्न-ए-पर्दा-नशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास मेंजो मैं बन सँवर के कहीं चलूँ मिरे साथ तुम भी चला करो
जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला हैतुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो
मेरा अज़्म इतना बुलंद है कि पराए शो'लों का डर नहींमुझे ख़ौफ़ आतिश-ए-गुल से है ये कहीं चमन को जला न दे
जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन मेंशरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो
मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलतेहै कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गयाहर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
मुद्दतों से यही आलम न तवक़्क़ो न उमीददिल पुकारे ही चला जाता है जानाँ जानाँ
रख़नों से दीवार-ए-चमन के मुँह को ले है छुपा या'नीइन सूराख़ों के टुक रहने को सौ का नज़ारा जाने है
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत हैऔर तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
जो यहाँ से कहीं न जाता थावो यहाँ से चला गया है कहीं
काँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में
फिर पुर्सिश-ए-जराहत-ए-दिल को चला है इश्क़सामान-ए-सद-हज़ार नमक-दाँ किए हुए
अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाबरोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है
सुब्ह चमन में उस को कहीं तकलीफ़-ए-हवा ले आई थीरुख़ से गुल को मोल लिया क़ामत से सर्व ग़ुलाम किया
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