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ग़ज़ल
मुझ में कोई मुझ जैसा हो ऐसा भी हो सकता है
या फिर कोई और छुपा हो ऐसा भी हो सकता है
सय्यद सरोश आसिफ़
ग़ज़ल
भरी दुनिया का 'ताहिर' चप्पा चप्पा छान मारा है
नहीं पाया कहीं भी शहर-ए-पाकिस्तान का मंज़र
ताहिर अदीम
ग़ज़ल
कितना भीड़-भड़क्का जग में कितना शोर-शराबा लेकिन
बस्ती बस्ती कूचा कूचा चप्पा चप्पा तन्हा तन्हा
ज्ञान चंद जैन
ग़ज़ल
अपनी ही पहचान नहीं तो साए की पहचान कहाँ
चप्पा चप्पा दीवारें हैं क्या देखेंगे आगे हम
अहसन यूसुफ़ ज़ई
ग़ज़ल
चप्पा चप्पा मेरा माज़ी जिस के दम से रौशन है
अपने दिल पर वो भी कभी क्या नाम तुम्हारा लिखती है