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ग़ज़ल
मक़्सद था मिले ग़म से नजात इस लिए ऐ 'चर्ख़'
इक उम्र मिरी वक़्फ़-ए-ख़िराजात हुई है
चरख़ चिन्योटी
ग़ज़ल
क़दम क़दम पे किए 'चर्ख़' ज़िंदगी ने मज़ाक़
समझ में आ न सका क़स्द-ए-ज़िंदगी क्या है
चरख़ चिन्योटी
ग़ज़ल
ग़म-ओ-'इशरत का मुरक़्क़ा' है ये दुनिया ऐ 'चर्ख़'
कभी काँटों कभी फूलों पे बसर होती है
चरख़ चिन्योटी
ग़ज़ल
ऐ 'फ़लक' मैं ने जला डाली हैं सारी कश्तियाँ
क्यूँकि इस मंज़िल से आगे कोई भी मंज़िल नहीं
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
जहाँ पे शम-ए-फ़लक है वहीं पे परवाना
तलाश कर मिरी महफ़िल मिरा दयार न पूछ
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
ऐ 'फ़लक' मैं हूँ सग-ए-ख़ाक कफ़-ए-पा उस का
मशअ'ल-ए-राह-ए-नजात उस की शनासाई है
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
मशरब-ए-दीद का शैदाई 'फ़लक' कहता है
जाम-ए-उल्फ़त में तमन्ना को मिला रहने दे