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ग़ज़ल
दो प्यालों में अभी सरशार हो जाता हूँ आ साक़ी
तू अपने जाम-ए-चश्म-ए-मस्त को गर्दिश में ला साक़ी
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
दौर में चश्म-ए-गुलाबी के तिरे ऐ बादा-नोश
बज़्म में करता है मस्तों की तरह पैमाना रक़्स
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
हाँ मोहतसिब अगर ख़ुम-ओ-मीना शिकस्त हो
साथ ही तुम्हारे सर का भी कासा शिकस्त हो
सुलेमान शिकोह गर्डर फ़ना
ग़ज़ल
ख़िरद-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
रोने में अब्र-ए-तर की तरह चश्म को मेरे जोश है
नाला में आह र'अद सा शोर है और ख़रोश है