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ग़ज़ल
इक चश्म-ए-मय-फ़रोश है मसरूफ़-ए-इंतिख़ाब
ऐसे में ग़म-नसीब को ख़ातिर में लाए कौन
बिशन दयाल शाद देहलवी
ग़ज़ल
लुत्फ़ पर माइल है शायद फिर वो चश्म-ए-मय-फ़रोश
बार बार आता है लब पर आज पैमाने का नाम
नासिर अंसारी
ग़ज़ल
गर तअ'ल्ली पर है वहम-ए-इम्तिहान-ए-मय-फ़रोश
बे-निशाँ हो कर निकालेंगे निशान-ए-मय-फ़रोश
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
राज़-ए-चश्म-ए-मय-गूँ है कैफ़-ए-मुद्दआ' मेरा
ग़ैर की नज़र से है दूर मै-कदा मेरा
अली मंज़ूर हैदराबादी
ग़ज़ल
ज़हे ज़हे मेरे ईमान-ओ-दीं कि मैं ने उन्हें
फ़िदा-ए-फ़र्क़-ए-ख़ुम-ओ-पा-ए-मय-फ़रोश किया