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ग़ज़ल
ख़त्म है शब चेहरा-ए-मशरिक़ से उठती है नक़ाब
दम-ज़दन में रौशनी ही रौशनी हो जाएगी
जगत मोहन लाल रवाँ
ग़ज़ल
जिस तरफ़ देखो हुजूम-ए-चेहरा-ए-बे-चेरगाँ
किस घने जंगल में यारो गुम हुआ सब का हुनर
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
तू ऐ दोस्त कहाँ ले आया चेहरा ये ख़ुर्शीद-मिसाल
सीने में आबाद करेंगे आँखों में तो समा न सके
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
किस का चमकता चेहरा लाएँ किस सूरज से माँगें धूप
घोर अँधेरा छा जाता है ख़ल्वत-ए-दिल में शाम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
अभी ये ज़ख़्म-ए-मसर्रत है ना-शगुफ़्ता सा
छिड़क दो मेरे कुछ आँसू हँसी के चेहरे पर
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
चेहरा भी बर्क़ भी दिल लेने में गेसू भी बला
एक सा मोजज़ा है काफ़िर ओ दीं-दार के पास
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ब-क़ौल-ए-शाइर-ए-मशरिक़ मैं अपना क़ातिल-ए-जाँ
हवा-ए-तुंद भी मैं बर्ग-ए-बे-नवा भी मैं
रफ़ीक़ ख़ावर जस्कानी
ग़ज़ल
मतला'-ए-अनवार-ए-मशरिक़ से है ख़िल्क़त बे-ख़बर
मुस्तनद परतव वो है मग़रिब से जो मन्क़ूल है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
चेहरा-ए-गुल-गून-ए-साक़ी से जो टपकी मय बनी
मस्त आँखों से जो निकले ढल के पैमाने बने