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ग़ज़ल
ये मुटियारें छैल-छबेली ये गबरू बाँके अलबेले
जाती है किस रूप नगर को ये टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी
शुरेश चंद्र शौक
ग़ज़ल
कुम्हारन ने चाक चलाया बे-कल सा जादू दिखलाया
रूप रूप में ढलती जाए चंचल छैल-छबेली मिट्टी
कृष्ण मुरारी
ग़ज़ल
हवा-ए-फ़स्ल-ए-गुल आई घटा घनघोर जब छाई
चला यूँ दौर-ए-पैमाना कि मयख़ाने मचल उट्ठे