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ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ये क़नाअ'त है इताअत है कि चाहत है 'फ़राज़'
हम तो राज़ी हैं वो जिस हाल में जैसा रक्खे
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
तबीअ'त अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
रहा करते हैं क़ैद-ए-होश में ऐ वाए-नाकामी
वो दश्त-ए-ख़ुद-फ़रामोशी के चक्कर याद आते हैं
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
कभी उन का नाम लेना कभी उन की बात करना
मिरा ज़ौक़ उन की चाहत मिरा शौक़ उन पे मरना